मधुर तरंगें (कहानियाँ)
Thursday 15 April 2021
चाँदू
एक दिन हम सब छत पर बैठे थे | मौसम में कुछ ठंडक थी लेकिन वो बड़ी अच्छी लग रही थी | हम सब एक साथ थे ये सबसे बड़ी सौगात थी | सभी अपनी-अपनी यादों के पिटारे से कुछ न कुछ निकालकर उसका रसास्वाद करा रहे थे | अब पिटारा खोलने की बारी थी नील की | उन्होंने बताना आरंभ किया कि जब मैं छोटा था तो माँ के साथ नानी के गाँव में छुट्टियाँ बिताने जाता था | चूँकि माँ नानी की सबसे बड़ी बेटी हैं तो मैं भी घर का सबसे बड़ा और लाड़ला बच्चा था | नानी के गाँव में खूब मस्ती कर वापस घर आते-आते मुझे उसकी याद बहुत सताने लगती, मैं बहुत विचलित हो जाता था | गाँव का सारा नज़ारा मेरी आँखों में किसी चलचित्र की भाँति घूमने लगता, कि कैसे मैं नानी के घर पहुँचते ही चांदू के बाड़े में पहुँच जाता, फिर न मुझे खाने-पीने का होश रहता न चांदू को | उन्होंने बताना आरंभ किया – उसका नाम मैंने और माँ ने रखा था चांदू | वो देखने में बहुत ही प्यारा था | उसके माथे पर चाँद की तरह सफ़ेद एक निशान था, उसका पूरा शरीर बिलकुल काला था, लेकिन माथे पर इस सफ़ेद निशान के कारण ही हमने उसे नाम दिया था चांदू | बहुत ही प्यारा,एकदम मासूम, मेरी हाँ में हाँ मिलाने वाला, मैं जैसा कहूँ उसे करने और मेरी हर बात सुनने वाला, मैं जहाँ चलने को कहूँ वहीं मेरे साथ बिना किसी ना नुकुर के साथ चल पड़ता | वो मेरा सबसे अच्छा, प्यारा और सच्चा दोस्त था | वो मेरे साथ बाज़ार भी जाता, खेलता भी था मेरे साथ | मैं उससे अपने मन की सारी बातें बड़े आराम से करता था, वो मेरी हर बात को बहुत ध्यान से सुनता था, और अपनी सहमति में केवल अपनी गर्दन हिलाता था | माँ, नानी और सभी लोग मेरी और उसकी दोस्ती देखकर खूब हँसते थे |
हम सभी लोग नील की बातों को बड़े ध्यान से सुन रहे थे | नील बता रहे थे कि गाँव में तालाब के किनारे भी हम बहुत देर तक साथ बैठकर बातें करते थे | कब वापस घर जाने का समय आ जाता पता ही नहीं चलता सारी तैयारी कर माँ जब गाड़ी में बैठने के लिए कहतीं तो मैं एक बार फिर चांदू के बाड़े में दौड़ जाता उससे लिपट जाता और रोने लगता चांदू मुझे ज़ोर से पकड़ तो नहीं सकता था पर उसकी आँखों से अश्रुधारा बहने लगती | किसी तरह माँ मुझे उससे अलग करतीं, चांदू को भी प्यार करतीं और कहतीं कि हम जल्दी ही आएंगे | इस तरह हम चांदू को आश्वासन दे भीगी आँखों से उसे छोड़, उसकी यादों को समेटे अगली बार फिर उससे मिलने के सपने आँखों में लिए अपने घर वापस आ जाते | आज भी मुझे उसकी बहुत याद आती है | मैंने नील से पूछा कि ये किसका बेटा है ?, नील ने अपनी शरारत भरी आँखों से सबकी आँखों में झाँका और कहा कि ये एक भैंस का बच्चा था | हम सब जो बड़े ध्यान से कहानी सुन रहे थे बहुत ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगे |
इस भूली-बिसरी को बहुत ही शानदार तरीके से नील ने प्रस्तुत किया था कि किसी को ज़रा सा भी एहसास नहीं हुआ कि चांदू कौन था, सभी उसमें एक इंसान की छवि की कल्पना कर रहे थे | किन्तु वो तो एक निरीह पशु था | उसका सभी बातों को सुनना, समझना और अपनी भावनाओं को मनुष्यों की भाँति व्यक्त करना सचमुच अद्भुत था | नील की वापसी पर चांदू का आँसू बहाना मानवीय संवेदनाओं का सजीव चित्रण करता है | कुत्ते, बिल्ली, हाथी, गाय, घोड़े आदि की वफादारी के बारे में तो सब जानते हैं और उनसे दोस्ती भी हो ही जाती है किन्तु भैंस के बच्चे से दोस्ती करना और मानवीय भावनाओं को महसूस करना सचमुच कल्पना से परे है |
यह किस्सा हमें बताता है कि बालक सचमुच ईश्वर का ही रूप होते हैं, उनका अन्तःकरण एकदम पवित्र होता है, वे किसी भी प्राणी में अपना साथी ढूँढ लेते हैं | जहाँ निश्छल भावनाएं होतीं हैं, वहाँ अनंत प्रेम होता है, और यह प्रेम अमिट होता है |
Tuesday 5 June 2018
Thursday 18 January 2018
तरुवर हमारे , सच्चे सहचर
Wednesday 17 January 2018
Thursday 29 June 2017
Saturday 4 March 2017
मन में उठते इन बवंडरों के साथ रानी बड़े ही पशोपेश में थी | अचानक वह उठ खड़ी हुई एक नए संकल्प के साथ कि वह महिला मंडल के साथ इस विषय पर चर्चा करेगी और बच्चों और बुजुर्गों के प्रति प्रेम और सौहार्द की अलख जगाएगी | नई पीढ़ी को सुधारने हेतु उसकी महिला मंडली कदम उठाएगी , बिखरते-टूटते परिवारों तथा रिश्तों को सहेजने का प्रयास करेगी | भले ही यह कदम छोटा होगा ,किन्तु इसके परिणाम दूरगामी तथा सुखद ही होंगे |