Thursday 15 April 2021


 राजा सगर का नाम तो सभी ने सुना ही होगा, हाँ वही राजा सगर जिनके सौ पुत्रों को तारने के लिए राजा भागीरथ ने कठिन तपस्या करके गंगा जी को पृथ्वी पर लाने का असंभव कार्य संभव कर दिखाया था | उन्हीं राजा सगर के नाम बारे में एक रोचक कथा महाऋषि वाल्मीकि ने रामायण में बताई है |
आपको यह तो ज्ञात होगा ही कि भगवान श्री राम की वंशावली बहुत बड़ी है और सबके बारे में बताना भी संभव नहीं होगा तो आगे बढ़ते हैं | राजा सगर के पिता का नाम था असित | एक बार वे शत्रुओं का सामना करते हुए प्रवासी हो गए और हिमालय पर रहने लगे | उनकी दो रानियाँ थीं | वे दोनों भी उनके साथ थीं | राजा असित हिमालय पर ही मृत्यु को प्राप्त हो गए | उनकी दोनों पत्नियाँ गर्भवती थीं | ऐसा सुना गया है | उनमें से एक रानी ने दूसरी रानी को जिसका नाम कालिंदी था, विषयुक्त भोजन दिया जिससे उसका बच्चा मर जाए | कालिंदी एक उत्तम पुत्र को पाना चाहती थी | इसके लिए उसने महाऋषि च्यवन से प्रार्थना की | उन्होंने उसे आश्वासन दिया कि तुम गर के साथ ही एक महापराक्रमी, बलवान, महातेजस्वी बालक को जन्म दोगी | समय आने पर रानी ने एक बालक को जन्म दिया जो गर के साथ ही उत्पन्न हुआ | इस कारण वह राजकुमार सगर के नाम से विख्यात हुआ |  


                                   चाँदू 

एक दिन हम सब छत पर बैठे थे | मौसम में कुछ ठंडक थी लेकिन वो बड़ी अच्छी लग रही थी | हम सब एक साथ थे ये सबसे बड़ी सौगात थी | सभी अपनी-अपनी यादों के पिटारे से कुछ न कुछ निकालकर उसका रसास्वाद करा रहे थे | अब पिटारा खोलने की बारी थी नील की | उन्होंने बताना आरंभ किया कि जब मैं छोटा था तो माँ के साथ नानी के गाँव में छुट्टियाँ बिताने जाता था | चूँकि माँ नानी की सबसे बड़ी बेटी हैं तो मैं भी घर का सबसे बड़ा और लाड़ला बच्चा था | नानी के गाँव में खूब मस्ती कर वापस घर आते-आते मुझे  उसकी याद बहुत सताने लगती, मैं बहुत विचलित हो जाता था | गाँव का सारा नज़ारा मेरी आँखों में किसी चलचित्र की भाँति घूमने लगता, कि कैसे मैं नानी के घर पहुँचते ही चांदू के बाड़े में पहुँच जाता, फिर न मुझे  खाने-पीने का होश रहता न चांदू को | उन्होंने बताना आरंभ किया – उसका नाम मैंने और माँ ने रखा था चांदू | वो देखने में बहुत ही प्यारा था | उसके माथे पर चाँद की तरह सफ़ेद एक निशान था, उसका पूरा शरीर बिलकुल काला था, लेकिन माथे पर इस सफ़ेद निशान के कारण ही हमने उसे नाम दिया था चांदू | बहुत ही प्यारा,एकदम मासूम, मेरी हाँ में हाँ मिलाने वाला, मैं जैसा कहूँ उसे करने और मेरी हर बात सुनने वाला, मैं जहाँ चलने को कहूँ वहीं मेरे साथ बिना किसी ना नुकुर के साथ चल पड़ता | वो मेरा सबसे अच्छा, प्यारा और सच्चा दोस्त था | वो मेरे साथ बाज़ार भी जाता, खेलता भी था मेरे साथ | मैं उससे अपने मन की सारी बातें बड़े आराम से करता था, वो मेरी हर बात को बहुत ध्यान से सुनता था, और अपनी सहमति में केवल अपनी गर्दन हिलाता था | माँ, नानी और सभी लोग मेरी और उसकी दोस्ती देखकर खूब हँसते थे | 

हम सभी लोग नील की बातों को बड़े ध्यान से सुन रहे थे | नील बता रहे थे कि गाँव में तालाब के किनारे भी हम बहुत देर तक साथ बैठकर बातें करते थे | कब वापस घर जाने का समय आ जाता पता ही नहीं चलता सारी तैयारी कर माँ जब गाड़ी में बैठने के लिए कहतीं तो मैं एक बार फिर चांदू के बाड़े में दौड़ जाता उससे लिपट जाता और रोने लगता चांदू मुझे ज़ोर से पकड़ तो नहीं सकता था पर उसकी आँखों से अश्रुधारा बहने लगती | किसी तरह माँ मुझे उससे अलग करतीं, चांदू को भी प्यार करतीं और कहतीं कि हम जल्दी ही आएंगे | इस तरह हम चांदू को आश्वासन दे भीगी आँखों से उसे छोड़, उसकी यादों को समेटे अगली बार फिर उससे मिलने के सपने आँखों में लिए अपने घर वापस आ जाते | आज भी मुझे उसकी बहुत याद आती है | मैंने नील से पूछा कि ये किसका बेटा है ?, नील ने अपनी शरारत भरी आँखों से सबकी आँखों में झाँका और कहा कि ये एक भैंस का बच्चा था | हम सब जो बड़े ध्यान से कहानी सुन रहे थे बहुत ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगे | 

इस भूली-बिसरी को बहुत ही शानदार तरीके से नील ने प्रस्तुत किया था कि किसी को ज़रा सा भी एहसास नहीं हुआ कि चांदू कौन था, सभी उसमें एक इंसान की छवि की कल्पना कर रहे थे | किन्तु वो तो एक निरीह पशु था | उसका सभी बातों को सुनना, समझना और अपनी भावनाओं को मनुष्यों की भाँति व्यक्त करना सचमुच अद्भुत था | नील की वापसी पर चांदू का  आँसू बहाना मानवीय संवेदनाओं का सजीव चित्रण करता है | कुत्ते, बिल्ली, हाथी, गाय, घोड़े आदि की वफादारी के बारे में तो सब जानते हैं और उनसे दोस्ती भी हो ही जाती है किन्तु भैंस के बच्चे से दोस्ती करना और मानवीय भावनाओं को महसूस करना सचमुच कल्पना से परे है |

यह किस्सा हमें बताता है कि बालक सचमुच ईश्वर  का ही रूप  होते हैं, उनका अन्तःकरण एकदम पवित्र होता  है, वे किसी भी प्राणी में अपना साथी ढूँढ लेते हैं | जहाँ निश्छल भावनाएं होतीं हैं, वहाँ अनंत प्रेम होता है, और यह प्रेम अमिट होता है |    


Tuesday 5 June 2018


                        बनो सह्रदय

                        
आदित्य अपने घर का सबसे छोटा और बहुत लाडला बच्चा है | घर के सभी सदस्य उसे खूब प्यार करते हैं , इस कारण वह शरारती भी है | इधर कुछ दिनों से दादाजी की पैनी और पारखी नजरों ने आदित्य में बहुत बड़ा परिवर्तन देखा, जो  उन्हें नकारत्मक लगा | गलती आदित्य की भी नहीं कही जा सकती क्योंकि वह एक बड़े संयुक्त परिवार का सबसे छोटा सदस्य है | जहाँ अनुशासन है, रिश्तों की मर्यादा एवं गरिमा है तो युवा पीढ़ी की स्वछन्दता एवं हठीलापन भी है | तो बात करते हैं आदित्य की | आदित्य के ताऊ जी का बेटा नरेश जब ९८% अंक से कक्षा बारहवीं में पास हुआ तो घर में बहुत ख़ुशी का माहौल था | दादाजी तो फूले नहीं समा रहे थे | प्रसन्नतावश उन्होंने एक शानदार भोज के आयोजन की घोषणा कर दी | सभी मित्रों ,स्नेहीजनों को आमंत्रित किया गया |
पड़ोस में गुप्ता अंकल के परिवार को भी बुलाया गया | हालांकि उस परिवार ने कभी भी आदित्य के परिवार से सम्बन्ध ठीक नहीं रखे | उन्हें हर वक्त आदित्य के परिवार को देखकर ईर्ष्या ही होती थी | इस कारण उनके परिवार में कोई कमी न होने के बावजूद एक जो कमी थी वो थी प्यार एवं सौहार्द की | यह जानते हुए भी कि गुप्ताजी का परिवार हमें पसंद नहीं करता है दादाजी नित्यप्रति उनके मुखिया से राम-राम करते, सबकी कुशल क्षेम पूछते | नरेश और गुप्ता जी के बेटे की बिलकुल भी नहीं बनती थी जबकि दोनों ही एक ही विद्यालय में पढ़ते हैं और पढ़ाई में भी एक समान हैं | कुछ दिनों पहले दोनों बच्चों में बड़ा झगड़ा हुआ था | समाप्त भी हो गया किन्तु नन्हें आदित्य के कोमल मन पर बुरी छाप छोड़ गया | वह घर में सबसे छोटी-छोटी बात पर नाराज हो जाता , लड़ाई करने लगता | उसे सबमें बुराई ही दिखाई देने लगी | जब दादाजी ने उससे कहा कि आदि चलो गुप्ताजी को भी डिनर के लिए बुलाते हैं तो वह एकदम से बिफर उठा और गुस्से से बोला उन्हें कोई नहीं बुलाएगा , हमें उनसे कोई बात नहीं करनी | दादाजी ने पूछा कि क्यों भई ऐसा क्या हो गया ? आदित्य ने कहा कि नरेश भैया कह रहे थे कि वे लोग बहुत बुरे हैं , हमारे लिए हमेशा बुरा ही सोचते हैं ,फिर हम क्यों उन्हें अपने घर बुलाएँ ? दादाजी ने कहा चलो मानते हैं कि वे हमारे बारे में बुरा सोचते हैं किन्तु हम तो उनके बारे में अच्छा सोचें देखना ऐसा करने पर वे एक दिन जरूर बदल जाएँगे | आदित्य को कुछ समझ नहीं आया | वह कुछ समझना नहीं चाहता था | उसके दिमाग में तो बस नरेश भैया की बातें ही छाई हुई थीं | दादाजी उसके मन को ताड़ गए , उन्होंने भी उस समय व्यर्थ ही गाल बजाना उचित नहीं समझा और रात की प्रतीक्षा करने लगे | हर दिन की भाँती रात को आदित्य दादाजी से कहानी सुनने के लिए आया तो दादाजी ने कहा आदित्य आज मैं तुम्हें जो कहानी सुनाऊँगा उसे ध्यान से तो सुनना ही साथ ही जो पूछूँगा उसका उत्तर भी तुम्हें देना ही होगा | आदित्य का जवाब हाँ में था | दादाजी ने कहानी शुरू की |
बहुत पुरानी बात है | एक राजा था | उसके राज्य में एक साधु आया उसने अपनी ज्योतिष विद्या से राजा के जीवन के बारे में घोषणा की कि आज से दो दिन पश्चात उत्तर दिशा में स्थित पीपल के वृक्ष के नीचे बांबी में रहने वाले एक सर्प के काटने से राजा की मृत्यु हो जाएगी | दरबार में जिसने भी सुना उस साधु से अत्यंत नाराज हुआ किसी ने कहा कि “ महाराज इसे बंदी बना लिया जाए” , तो किसी ने कहा कि इसे फांसी दी जाए | जितने मुँह उतनी बातें | राजा शांत , सबकी बातें सुन रहा था | उसने सेवकों को आदेश दिया कि पीपल के पेड़ से लेकर राजमहल तक के मार्ग को फूलों से सजाओ, सारे रास्ते में इत्र का छिड़काव करो एवं थोड़ी-थोड़ी दूरी पर चांदी के कटोरे में दूध भरकर रखो | राजा का यह आदेश सुनकर प्रजा अचंभित थी किन्तु क्या किया जा सकता था राजा का आदेश था तो पालन तो होना ही था | दादीजी ने दादाजी को टोका कि “क्या आप भी रात में बच्चे को सर्प की कहानी सुना रहे हैं” | दादाजी ने  दादी से कहा “तुम बेकार की चिंता करती हो, हमारा आदित्य कोई  डरपोक थोड़ी न है बड़ा ही बहादुर है ये” | यह कहकर उन्होंने आदित्य की पीठ थपथपाई | दादाजी आगे भी तो बताइए कि क्या राजा सचमुच मर गया ? दादाजी ने कहा अरे राजा इतनी जल्दी मरता है क्या ? और ठहाका लगाकर हँसने लगे | खैर दादाजी ने कहानी आगे बढ़ाई कि निश्चित समय पर सर्प बांबी से बाहर आया और महल की ओर बढ़ने लगा | सारे रास्ते उसने फूलों की सुगंध का आनंद उठाया और दूध भी पिया | जब वह महल पहुँच तो उसका मन बदल चुका था | उसने सोचा कि जब राजा को पता है कि “मैं उसे मारने के लिए जा रहा हूँ फिर भी उसने मेरे रास्ते को इस प्रकार सजवाया है, मेरे लिए भोजन का प्रबंध भी किया है | सचमुच राजा एक महान आत्मा है”| उसने राजा के समीप जाकर कहा “ हे राजन मैं तुम्हारी इस सहृदयता से प्रसन्न हूँ तुम जो चाहो मुझसे माँग सकते हो”| राजा ने हाथ जोड़कर कहा “ हे सर्प देव ईश्वर का दिया सब कुछ है मेरे पास किन्तु यदि आप मुझसे प्रसन्न हैं तो कृपया बताइए कि आप मेरे प्राण क्यों लेना चाहते हैं”| सर्प ने कहा – राजन ये पूर्व जन्म की बात है हम दोनों में बड़े ही गहरी मित्रता थी | हम दोनों भ्रमण पर थे कि अचानक पैर फिसलने से मैं कुएँ में गिर गया और मेरी मृत्यु हो गई | तुमने मुझे बचाने का पूरा प्रयास किया किन्तु असफल रहे | मैंने इस घटना का जिम्मेदार तुम्हें समझा और सर्प के रूप में जन्म लेने के बाद भी तुमसे बदला लेने की सोचता रहा | तुम तो पूर्व जन्म की सब बातों को भूल गए किन्तु मुझे सब याद रहा | आज मृत्यु को समीप जानकर भी तुमने मेरा जो स्वागत किया है उससे मुझे प्रायश्चित है कि मैं पिछले जन्म में  गलत था जो इतने वर्षों तक बदले की आग में जलता रहा”| उसने प्रसन्न होकर राजा को अपनी मणि दे दी और अपने प्राण त्याग दिए |
दादाजी ने देखा कि आदि ने बड़े ही ध्यान से कहानी सुनी है | उन्होंने पूछा “कहो आदि कैसी लगी कहानी |” आदि बोला –“दादाजी एकदम मस्त , अब आप पूछोगे कि क्या सीख मिली इस कहानी से तो मेरा उत्तर तैयार है कि अपने अच्छे कामों  (सद्कर्मो ) से अपने शत्रुओं को भी अपना मित्र बना सकते हैं ” “मेरा उत्तर सही है न दादाजी” | आदित्य की बात सुनकर दादा-पोता और दादी खिलखिलाकर हँस पड़े | अगली सुबह आदित्य का एक नया रूप देखकर सब अचंभित थे |      
      

Thursday 18 January 2018


       तरुवर हमारे , सच्चे सहचर

रोहन की दादी का पूरी सोसाइटी में बड़ा सम्मान था | बच्चे क्या,बूढ़े क्या हर कोई उनकी बात को मानते थे | पर बाल-मन तो बाल मन ठहरा उन्मुक्तता , मासूमियत तथा कुछ भी कर गुजरने की फितरत इन बच्चों में भरी पड़ी थी | इसलिए थोड़े निरंकुश भी थे | जब चाहे पार्क में खेलते यूँ ही घुमते समय पेड़-पौधों को नुक्सान पहुँचाते रहते थे | वे प्रायः देखा करती थीं कि बच्चे पार्क में खेलते समय अक्सर पेड़ों की डालियाँ , पत्ते एवं फूलों को बेरहमी से तोड़ डालते थे | बहुत विचार करने के बाद दादी ने उन्हें सुधरने की युक्ति निकाली और उन्हें वास्तविकता पर आधारित कहानी सुनानी आरम्भ की |
 मनुष्य के जन्म से लेकर मृत्यु तक पक्का साथ निभाते हैं ये वृक्ष, निशब्द रहकर अपना कर्तव्य निभाते रहते हैं | जीवित रहने के लिए प्रत्येक प्राणधारी को अनवरत प्राणवायु प्रदान करते हैं | तो चलो बच्चों आज इन वृक्षों की परोपकारी प्रवृत्ति की कहानी बताती हूँ | रोहन की दादी ने रोहन और उसके दोस्तों को बताया तो छोटे-छोटे बच्चे आश्चर्य से दादी का मुँह ताकने लगे | उन्हें तो कभी किसी ने बताया ही नहीं था कि वृक्षों की हमारे जीवन में कितनी महत्ता है | सभी की आँखें बड़ी उत्सुकता से दादी की ओर देख रही थी और वे सब दादी की बात शुरू होने की प्रतीक्षा कर रहे थे | दादी ने अपनी बात संत कबीर के इस दोहे से आरम्भ की
तरुवर फल नहीं खात हैं , सरवर पियत न नीर |
परमारथ  के कारने संतन , धरा सरीर ||
समझे बच्चों ! दादी ने पूछा तो आदित्य ने कहा दादी थोड़ा-थोड़ा समझ आया पूरा नहीं | दादी ने कहा मैं बताती हूँ कि पेड़ अपने फल स्वयं नहीं खाते , नदियाँ जल स्वयं नहीं पीतीं ,परोपकार करने के लिए ही अच्छे मनुष्य जन्म लेते हैं | हमारी प्रकृति ने हमें सब कुछ दिया है बस जरूरत है तो उसे सहेजने की , संभालकर रखने की | प्रकृति का एक बहुत ही ख़ास हिस्सा हैं तरुवर | आज विश्व में बाढ़ आदि की जो समस्या होती है न उसे रोकने में ये बहुत सहायक होते हैं क्योंकि ये मिटटी के कटाव को रोकते हैं ,जहाँ वृक्षों के घने जंगल होते हैं वहाँ मवेशियों (जानवरों) के लिए चारा (भोजन )मिलता है | वृक्ष अप्रत्याशित रूप से हमारी प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते हैं क्योंकि ये स्वयं को कीटों से बचाने के लिए फाइनटोनसाइड रसायन हवा में छोड़ते हैं , इसमें एंटी बैक्टीरियल खूबी होती है | साँसों के जरिये जब ये हमारे शरीर में जाता है तो हमारी प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है | दादी ने कहा यह तो तुम लोग भी जानते हो न कि वृक्ष प्रदूषण को कम करते हैंसब बच्चे एक साथ बोल उठे हाँ-हाँ दादी ये वातावरण से कार्बनडाईऑक्साईड सोख कर उसे ऑक्सीजन में बदल देते हैं, और हमें शुद्ध प्राणवायु देते हैं”| दादी ने सबको शाबाशी दी और अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोलीं पता है बच्चों यदि किसी के घर के आस-पास घने पेड़ लगे हों तो गर्मियों में उस घर में बिजली का बिल कम आता है | “ऐ ! निशि ने कहा ऐसा कैसे हो सकता है दादी , बिजली के बिल का पेड़ों से क्या मतलब” | दादी ने कहा है मतलब , वो ऐसे कि घर के आस-पास पेड़-पौधे लगाने से बगीचे से वाष्पीकरण बहुत कम होता है| “ये वाष्पीकरण क्या होता है दादीनलिन ने पूछा | दादी कुछ कहती उनसे पहले मिनी बोल उठी इवेपोरेशन होता है ये | इससे हमारी धरा तक सूर्य की किरणें सीधी नहीं पहुँच पाती और  पानी को भाप बना कर नहीं उड़ा पातींक्यों दादी ऍम आई राईट”| दादी ने कहा मिनी यू आर अब्सोल्युटली राईट”| इसके अलावा तरु सूर्य की हानिकारक किरणों से भी हमारा बचाव करते हैं | सूर्य की अल्ट्रावायलेट किरणें हमारी त्वचा को बहुत हानि पहुँचाती हैं, ये किरणें त्वचा के कैंसर के लिए जिम्मेदार होती हैं | स्कूलों तथा पार्कों में घने वृक्ष होने से बच्चे इन हानिकारक किरणों से बचे रहते हैं | वृक्षों की पत्तियाँ,टहनियाँ और शाखाएँ तेज शोर को रोकती हैं तथा तेज बारिश की गति को धीमा कर धरती की मिटटी को कटने से बचाती हैं | पेड़ों की पत्तियाँ , तने और जड़ें पक्षियों ,जानवरों तथा कीट-पतंगों को रहने के लिए घर देते हैं | विकास के चक्कर में हम पेड़ों को काटते तो जा रहे हैं पर लगाते नहीं हैं और लगाते भी हैं तो उनकी देखभाल सही तरीके से नहीं करते जिससे वे मर जाते हैं |
अब बात यह है कि जब ऐसे तरुवर जो कि वास्तविक अर्थों में हमारे सच्चे मित्र हैं , ये अपनी मित्रता निभाते हैं तो क्या हमारा कर्तव्य नहीं है कि हम इन्हें बचाएँ और नये पेड़ लगाकर धरती को हरा-भरा बनाएँ |
सभी बच्चे दादी की इन बातों को बड़े ही ध्यान से सुन रहे थे | वे सचमुच बहुत प्रभावित थे इन बातों से | वे आपस में कहने लगे कि यार दादी की बातों में दम तो है तो क्यों न हम पेड़ों को बचाने का कार्य करें और नये भी लगाएँ | सबने एक साथ पेड़ों को बचाने एवं नये लगाने की शपथ ली | दादी के चेहरे पर मंद-मंद मुस्कान फ़ैल रही थी क्योंकि उन्होंने आज अपने लक्ष्य की पहली सीढ़ी पार कर ली थी | उन्होंने इन मासूमों को राह पर लाने के लिए यह राह चुनी थी |  उन्हें अपनी  मंजिल स्पष्ट दिखाई दे रही थी |     


Wednesday 17 January 2018

छोटा मुन्नू, काम बड़े 
मुन्नू का परिवार साधारण था | पिताजी सब्जी बेचने का काम करते थे और माँ साड़ियों में फौल-पीको का काम करती थीं | मुन्नू की एक बहन थी जो उससे लगभग चार साल बड़ी थी और एक भाई जो उससे तीन साल छोटा था | माता-पिता अपने-अपने काम तथा परिवार के प्रति पूरी तरह समर्पित थे |तीनों भाई-बहन पढ़ाई के साथ-साथ समय-समय पर माता-पिता की सहायता भी करते थे | मुन्नू छुट्टी वाले दिन पिताजी की साथ थोक मंडी जाकर सब्जी लाता और दुकान लगाने में मदद करता | दोपहर में पिताजी को आराम करने के लिए घर भेज स्वयं दुकान संभालता | इसी प्रकार दीदी भी माँ के काम में हाथ बँटाती | जिन्दगी ठीक चल रही थी | माता-पिता अपने बच्चों के व्यवहार तथा उन्नति से संतुष्ट थे | तीनों ही बच्चों ने संस्कार तो मानो घुट्टी के साथ ही पी लिए थे | उनके व्यवहार तथा आचरण से लगता नहीं था कि उनके माता-पिता दोयम दर्जे का कार्य करते हैं | विद्यालय या अन्य कहीं पूछे जाने पर मन्नू बड़े ही फक्र से अपने माता-पिता के बारे में बताता, वह बिलकुल भी नहीं छुपाता उनके कार्य को और न ही उसे लज्जा महसूस होती | बल्कि वह कहता कि “ मेरे माता-पिता जो कार्य कर रहे हैं वह कोई छोटा नहीं है ,आखिर वे हम बच्चों के लिए ही तो इतना परिश्रम कर रहे हैं, तो हम बच्चों का भी कर्त्तव्य है कि हम उनके सपने साकार करें”| वह बड़े ही गर्व से कहता “ देखना मैं एक दिन इंजीनियर बनूँगा, आई-आई टी कानपुर में पढूँगा”| उसके आत्मविश्वास को देख माता-पिता ख़ुशी से फूले नहीं समाते | वे ईश्वर से प्रार्थना करते कि ईश्वर उनके बच्चों की हर इच्छा को पूरा करें |
मुन्नू का परिवार एक गरीब बस्ती में रहता था | एक दिन जब मुन्नू विद्यालय जा रहा था तो उसने देखा कि खुदाई करने की मशीनें आ रहीं हैं | उसकी बस्ती में एक बहुमंजिला सरकारी भवन बनाने का कार्य शुरू होने जा रहा था ,आज भूमि पूजन था | यह एक बहुत बड़ी परियोजना थी , जिसमें गरीबी की रेखा से नीचे लोगों के आवास एवं रोजगार हेतु कार्य आरम्भ होने जा रहा था | लौटने पर उसने देखा कि खुदाई का काम चालू हो चुका है| रात होने पर मजदूरों ने मशीनें एक तरफ लगाईं और चले गए | बहुत थोड़ा ही काम हुआ था , दुर्घटना की कोई संभावना नहीं थी | दूसरे दिन निर्धार्रित समय पर काम चालू हो गया | मुन्नू जब विद्यालय से लौटा मजदूर खाना खा रहे थे और एक बहुत बड़ा गढ्डा खुद चुका था | उसे देखते ही मुन्नू के दिमाग में बिजली सी कौंध गई कि इसमें तो कोई भी गिर सकता है, जान जा सकती है किसी की | कुछ करना चाहिए | क्योंकि मुन्नू ने टी वी पर देख और सुन रखा था कि “गढ्डे में गिरकर एक मासूम की मौत”|
इस तरह की घटनाएँ आए दिन होती रहती हैं | मुन्नू ने अपना बस्ता एक तरफ रखा और तुरंत अपने दोस्तों के साथ मिलकर पेड़ों की टहनियों से गढ्डे की घेराबंदी कर दी और लोगों के आने जाने का रास्ता बदल दिया | क्योंकि बच्चों का विद्यालय से वापस आना शुरू हो चुका था |
जब सुपरवाइजर का ध्यान उस तरफ गया तो वह हक्का-बक्का रह गया कि उसके आदमियों ने जो भूल की थी उसे इन छोटे बच्चों ने कैसे सुधारा| वह मुन्नू और उसके दोस्तों से बहुत खुश हुआ और अपने आदमियों पर बरसने लगा कि “ तुम लोगों ने खाने पर जाने से पहले - इस तरफ कोई न आए काम चालू है का बोर्ड क्यों नहीं लगाया ?” मुन्नू ने उन्हें रोकते हुए कहा कि “ अंकल इन्हें कुछ न कहिये क्योंकि दिन भर लगातार काम करने पर जो भूख लगती है तो कुछ याद नहीं रहता, इन्हें खाना खाने दीजिये ये सब  मेहनत करके थक गए हैं |” मुन्नू ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा कि “ हम भी तो इस देश के नागरिक हैं हमारा  भी तो कुछ कर्त्तव्य है |” छोटे मुन्नू की बड़ी बातें सुपरवाइजर को छू गई| उसने मुन्नू और उसकी टीम को ह्रदय से धन्यवाद दिया और कहा कि “आज तुम लोगों के कारण बड़ा हादसा होने से टला है, क्योंकि यह समय तो बच्चों के विद्यालय से घर लौटने का है और घर आने की ख़ुशी में बच्चे जिस तरह दौड़ते हैं बस .................... बाप रे ! कुछ भी हो सकता था |” उसने मुन्नू और उसके दोस्तों को एक-एक चौकलेट दी और उन सबसे पूछा कि वे बड़े होकर क्या बनना चाहते हैं | सबने अपने-अपने सपने साझा किए | सुपरवाइजर अंकल ने सबको आशीर्वाद दिया कि “ तुम सब एक दिन जरूर सफलता प्राप्त करोगे | बस ईमानदारी से कार्य करते रहो और अपने कर्तव्यों का पालन करना , सफलता तुम्हारे कदम चूमेगी |”
सुपरवाइजर मुन्नू और उसकी टीम से अत्यधिक प्रभावित थे ,उनके  मन में भी इन बच्चों तथा इनके परिवारों के लिए कुछ करने की प्रबल इक्छा जागृत हो रही थी | बहुत विचार करने के बाद वे इस निष्कर्ष पर  कि इस परियोजना में वे एक पार्क तथा एक पुस्तकालय भी बनवाने की योजना के लिए सरकार से आवेदन करेंगे | उन्होंने इसे पूरा करने के लिए अथक प्रयास किए | उनके प्रयास से बच्चों  तथा वृद्धों के लिए पार्क भी बना तथा खाली समय में जो लोग ज्ञानवर्धन हेतु पढ़ाई करना चाहते हैं उनके लिए पुस्तकालय में सभी सुविधाओं की व्यवस्था भी हो गई | इस प्रकार मुन्नू की होशियारी के कारण सभी की सुरक्षा के प्रति जागरूकता तो बढ़ी ही साथ ही उनके लिए उन्नति के द्वार भी खुल गए |   
  

Thursday 29 June 2017

एक था राहुल

राहुल अपने परिवार का बड़ा ही लाडला बच्चा था ,किन्तु था बड़ा ही शरारती | दिमाग बहुत ही तेज था किन्तु शरारतों के कारण हमेशा खुराफ़ात में ही लगा रहता था | कभी अपनी कालोनी के बच्चों के पीछे गली के कुत्ते लगा देता तो कभी विद्यालय में नकली छिपकली से शिक्षकों को डरा देता | हर दिन उसके दिमाग में नई-नई शरारतें जन्म लेतीं थी | सबको खूब परेशान करता और दूसरों को परेशान देख बहुत खुश होता | उसकी इन हरकतों से सब परेशान थे | आए दिन उसके मम्मी-पापा को विद्यालय बुलाकर उसकी शिकायत की जाती, तो कभी कॉलोनी के बड़े-बुजुर्ग उसके पिताजी को ढ़ेरों नसीहतें दे डालते पर उस पर कोई असर नहीं होता | माँ का तो जैसे घर से निकलना ही दूभर हो चला था |
           राहुल भी अब छोटा न रहा , वह भी किशोरावस्था की दहलीज पर कदम रख रहा था | पर उसकी शरारतों में कोई कमी न आई | एक दिन उसके खुराफाती दिमाग में कुछ गलत करने की कुलबुलाहट हो रही थी , तभी उसको एक नेत्रहीन बुजुर्ग दिखाई दिए | बुजुर्गों से उसे वैसे ही कुछ नफरत सी थी , क्योंकि वे उसकी शिकायत उसके पिता से जो करते थे | खैर आज उसने कुछ अलग करने का सोचा और उसने नेत्रहीन बुजुर्ग को रास्ता पार कराने के बहाने सड़क के बीच बैठे आवारा पशुओं के पास छोड़ने का निर्णय लिया | अगले ही क्षण उसने बड़े ही विनम्र भाव से बाबाजी से आग्रह किया कि क्या वह उनकी कोई सहायता कर सकता है ? बुजुर्ग की सहमति मिलते ही उसने सड़क पार कराने के बहाने आवारा पशुओं के पास ले जाकर छोड़ दिया और बोला “ बाबाजी अब आप सीधे जा सकते हैं “ बाबाजी ने उसे खूब आशीर्वाद दिया |
विवेक बहुत ही सद्विचारों वाला सहृदय एवं विनम्र बालक था | वह अपनी साईकल से घर जा रहा था , जैसे ही उसकी नज़र नेत्रहीन बाबाजी पर पड़ी वह तुरंत ही साईकल से लगभग कूद ही पड़ा और उनका हाथ पकड़कर दूसरी ओर ले गया | अचानक इस तरह होने से बाबाजी कुछ परेशान हो गए , उन्होंने विवेक से पूछा , तो विवेक ने सारी बात बता दी कि वे आवारा पशुओं के झुण्ड के समीप पहुँच रहे थे | बाबाजी ने कहा- “बेटा मेरी ही गलती है , मुझे तो तुम्हारे जैसे ही बालक ने मुझे रास्ता पार करवाया और यहाँ छोड़ा था “ खैर विवेक ने ज्यादा न सोचकर बाबाजी को उनके गंतव्य तक छोड़ दिया जहाँ उनके साथी उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे | इसी बीच राहुल ने सोचा कि अब ज़रा देखा तो जाए कि बाबाजी का क्या हुआ ? वह यह सब सोच रहा था और बड़ा खुश था कि “अहा ,बड़ा मज़ा आएगा “ वह इसी में खोया हुआ था उसका ध्यान सड़क पर था ही नहीं कि एक सांड बड़ी तेजी से उसकी ओर बढ़ रहा था | विवेक भी बड़ी जल्दी में था किन्तु जैसे ही उसने सांड को राहुल की तरफ आते देखा तो उसने राहुल को दूसरी ओर धक्का दे दिया , राहुल कुछ समझ पाता कि सांड तेजी से उसके पास से निकल गया , राहुल बाल-बाल बच गया था | विवेक ने साईकल एक ओर  खड़ी कर राहुल को सहारा देकर उठाया और पुछा कि-“ भाई ध्यान कहाँ था तुम्हारा , अभी तुम्हें कुछ हो जाता तो तुम्हारे माता-पिता कितने परेशान हो जाते “ | राहुल ने उसे धन्यवाद दिया | राहुल ने सड़क पार निगाह डाली तो विवेक ने पूछा कि “किसे ढूंढ़ रहे हो “ राहुल ने विवेक को बुजुर्ग के बारे में बताया तो विवेक ने कहा-“ तुम उनकी चिंता मत करो वे सुरक्षित हैं मैंने उन्हें उनके मित्रों तक पहुँचा दिया है, चलो तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ देता हूँ |” यह कहकर विवेक ने राहुल को अपनी साईकल पर बिठा लिया | विवेक ने राहुल को कहा कि वह पहले अपने माता-पिता को बताएगा कि वह कहाँ एवं क्यों जा रहा है अन्यथा वे व्यर्थ ही चिंता करेंगे | जैसे ही विवेक ने अपनी कॉलोनी में प्रवेश किया छोटे बच्चे विवेक भैया विवेक भैया  कहकर उसे बुला रहे थे वह भी सबसे हँसकर बोल रहा था | रास्ते में उसे जो भी बड़े-बुजुर्ग मिलते वह उन्हें प्रणाम कर रहा था वे भी उसे आशीर्वाद दे रहे थे | रास्ते में राहुल सोच रहा था कि विवेक उसकी ही उम्र का है किन्तु उसमें और विवेक में कितना फर्क है | विवेक जैसे ही घर पहुँचा द्वार पर ही उसके पिताजी मिल गए , विवेक ने संक्षेप में उन्हें सारी घटना बता दी और कहा कि वह राहुल को उसके घर छोड़कर जल्दी ही वापस आ जायेगा |
जब विवेक अपने पिता को सारी बातें बता रहा था तो विवेक के पिता के चेहरे पर गर्व के भावों को राहुल ने बखूबी देखा और उसे बड़ा ही बुरा लगा कि –“ एक मैं हूँ जिसके माता-पिता को मेरी वजह से आए दिन शर्मिंदा होना पड़ता है “| उसका मन आत्मग्लानि से भर उठा | उसने निर्णय लिया कि वह भी विवेक की भांति बनेगा | उसके माता-पिता भी उस पर गर्व कर सकेंगे | विवेक की कुछ ही देर की संगति ने राहुल का ह्रदय परिवर्तन कर दिया |

 सच ही कहा है रहीम दास जी ने कि -
कदली सीप भुजंग मुख स्वांति एक गुन तीन 
जैसी संगति बैठिये तैसो ही फल दीन्ह |

Saturday 4 March 2017

                           एक प्रयास ऐसा भी (कहानी)
पड़ोस में रहने वाली प्रज्ञा के घर से रोज ही बच्चे  के रोने की , बुजुर्गों को मिलने वाली नसीहतों की और घर में काम  करने वाली क्षमा दीदी को दिनभर क्या-क्या करना है , बेटे को क्या खिलाना है, कब नहलाना है ,कब सुलाना है, माँ–बाबूजी को क्या खाना देना है,कब कौन सी दवाई देनी है आदि आदि निर्देशों की आवाजें रोज सुबह-सुबह आतीं हैं | प्रज्ञा मल्टी नॅशनल कम्पनी में उच्च पद पर है ,उसका पति प्रवीन भी सरकारी नौकरी में है | दोनों पति पत्नी अच्छा  पैसा कमाते  हैं | दोनों की कमाई तो अच्छी हो रही है ,पैसे की कमी नहीं है बस यदि कमी है तो रिश्तों में आत्मीयता की |
रानी रोज-रोज यह सब देखती –सुनती तो उसका मन बड़ा ही विचलित हो जाता | एक दिन उसके मन की उथल-पुथल कुछ अधिक ही बढ़ गई | वह बड़ी ही गंभीरता से विचार करने लगी | अचानक उसके कानों में टी वी पर आते डायपर के विज्ञापन की आवाज पड़ी ,उसका तो मानो मन ही खिल उठा, जैसे उसे समाधान के पिटारे की चाबी मिल गई | वह इन डायपरस के इर्द-गिर्द समस्या का समाधान ढूंढने लगी | रानी सोच रही थी कि प्रज्ञा बेटे को दिन-रात डायपर पहनाकर रखती है | उसके जाने के बाद क्षमा कितनी बार चेक करती है कि बेटा कहीं गंदगी में तो नहीं है | यह प्रज्ञा को बिलकुल नहीं पता | क्षमा भी क्या करे ,सारे घर की और घर के हर सदस्य की जिम्मेवारी उसी की है | आखिर वह भी तो इंसान है ,उसका भी तो घर-परिवार है |
डेढ़ साल का बेटा है प्रज्ञा का | इन डायपरस में ये मासूम कितना झेलता है अपनी ही गंदगी को | रानी का दिमाग भन्ना रहा था | स्वर्ग-नरक की बातें उसे भ्रमित कर उसके दिमाग पर लगातार चोट कर रही थीं कि कितनी कठिनाइयों को झेलकर माँ एक बच्चे को जन्म देती है | माँ के उदर में शिशु भी तो कितने कष्ट में रहता है , उल्टा लटका रहता है और सभी तरह के कष्ट झेलने के पश्चात नौ माह बाद संसार में जन्म लेता है | और फिर सिलसिला शुरू हो जाता है इन डायपरस के साथ जीने का | कामकाजी महिलाएँ इतनी अभ्यस्त हैं इन डायपरस के प्रयोग  की कि दिन हो या रात बेचारे शिशु को इनसे छुटकारा नहीं मिलता | वह कहे भी तो कैसे उसकी अभिव्यक्ति की क्षमता अभी विकसित नहीं हुई है | एक गंदगी से निकलकर बेचारा दूसरे दल-दल में जा फंसा है | न जाने ऐसे कितने ही प्रश्न रानी को व्यथित कर रहे थे | वह सोचने लगी हमारा ही समय ही अच्छा था कि हम अपने बच्चों को कपड़े से बनी मुलायम नैपी पहनाते थे और गीली होने पर तुरंत बदल देते थे | नैपी बदलना एक काम अवश्य था किन्तु इस बहाने माँ का स्पर्श कितनी सुखद अनुभूति देता था शिशु को | दोनों का रिश्ता दिनोंदिन मजबूत होता जाता था | दोनों के बीच निरंतर एक मूक संवाद तथा प्यार का आदान-प्रदान होता था | शिशु पूरी तरह से माँ पर आश्रित होता है किन्तु जब तक माँ का समर्पण नहीं होगा यह रिश्ता खोखला ही रहेगा | बार-बार माँ का स्पर्श ,उसकी आवाज , उसकी आहट ,सबका पता होता है शिशु को | माँ के स्पर्श के साथ ही माँ-बच्चे में एक गहरा नाता जुड़ जाता है | अपने हाथों से नहलाना ,कपड़े पहनाना ,खाना खिलाना ,लोरी सुनाकर सुलाना ,बार-बार प्यार से चूमना ,जरा सा रोने पर गोद में उठा कर सर पर प्यार से हाथ फेरना | ऐसी ही न जाने कितनी ही बातें माँ-बच्चे के बीच अटूट रिश्ता बना देती थीं | एक दूसरे  को बिलकुल नजदीक ला देती थीं | इतनी कि दोनों को एक दूसरे बिना अधूरा बना देती थी | और आज का जमाना रानी सोच रही थी  बाप रे! क्या है | सिर्फ मशीन बनकर रह गई  है माँ , पैसे कमाने की मशीन | अपनी ममता लुटाने के बजाय आया की गोद दे दी | आया को अपनी तनख्वाह से मतलब है न कि बच्चे की सही देखभाल से | माँ की अनुपस्थिति में जब बच्चा रोता है तो उसे डांट-डपटकर जबदस्ती चुप कराती है | उसके पास माँ के जैसी कोमल भावनाओं का ममता भरा स्पर्श नहीं होता ,जो बच्चे को भावनात्मक रूप से सपोर्ट कर मानसिक शांति दे सके | उसे अहसास करा  पाए कि बेटा चुप हो जा तेरी माँ तेरे साथ है | गंद से भरे डायपर में बच्चे की छटपटाहट का पता ही नहीं चलता कि वो कहने की कोशिश में है कि इस गंदगी से मुझे मुक्त करो | ऐसे कितने ही किस्से हैं भावनाओं से जुड़े | आज समाज में क्या दे रहीं हैं माएँ अपने बच्चों को | हाँ एक बात सौ प्रतिशत सही है कि आप जो देते हैं वही बढ़कर आपको वापस मिलता है | कहते हैं न कि “बोया पेड़ बबूल का तो आम कहाँ से पायें |”  सही बात है आज हम जो अपने बच्चों को डायपर पहना रहे हैं तो कोई बड़ी बात नहीं होगी यदि भविष्य में वो हमें पहनाएँ | क्योंकि बचपन और बुढ़ापा एक-दूसरे के पर्याय हैं | हे भगवान ! यह सब सोच-सोचकर रानी की बैचैनी बढती ही जा रही है | इस युग में हमने पाश्चात्य संस्कृति को अपनाकर जो भूल की है वह आज हमारे सामने एकाकी परिवार और वृद्धाश्रम के रूप में है | हम चाहते तो हैं बहुत कुछ करना पर होता कुछ और ही है | कुछ भी सहज नहीं है ,सब कुछ बनावटी है | आज हमारे पास बच्चों के लिए समय नहीं है कल उनके पास हमारे लिए नहीं होगा तब कोसने का क्या लाभ होगा | बस आज सुधारो ,कल अपने आप सुधर जाएगा |

मन में उठते इन बवंडरों के साथ रानी बड़े ही पशोपेश में थी | अचानक वह उठ खड़ी हुई एक नए संकल्प के साथ कि वह महिला मंडल के साथ इस विषय पर चर्चा करेगी और बच्चों और बुजुर्गों के प्रति प्रेम और सौहार्द की अलख जगाएगी | नई पीढ़ी को सुधारने हेतु उसकी महिला मंडली कदम उठाएगी , बिखरते-टूटते परिवारों तथा रिश्तों को सहेजने का प्रयास करेगी | भले ही यह कदम छोटा होगा ,किन्तु इसके परिणाम दूरगामी तथा सुखद ही होंगे |